ट्रैन एक लाइन से दूसरी लाइन पर कैसे आ जाती है? आओ जानें।
ट्रैन एक लाइन से दूसरी लाइन पर कैसे आ जाती है? इसको जानने के लिए यह जानना जरूरी है कि लाइन / रेलवे ट्रैक के बीच रेलों को इस तरह से व्यवस्थित कर उसे दूसरी लाइन से जोड़ दिया जाता है। इस व्यवस्था को टर्नआउट या “ पॉइंट्स एंड क्रासिंग ” कहते हैं। इस पॉइंट एंड क्रासिंग को स्टेशन मास्टर द्वारा चलाया जाता है। पुराने ज़माने में पॉइंट्स एंड क्रासिंग को चलने के लिए रॉड हुआ करती थी और उन्हें नजदीकी केबिन से चलाया जाता था। इसको चलने के लिए एक रॉड तथा लॉक करने के लिए दूसरी रॉड होती थी। स्टेशन मास्टर से प्राइवेट नंबर लेकर ही किसी लाइन के लिए पॉइंट्स को केबिन मैन द्वारा चलाया जाता था। लेकिन आज के समय में स्टेशन मास्टर द्वारा कंप्यूटर की सहायता चलाया और लॉक किया जाता है।
ट्रैन एक लाइन से दूसरी लाइन पर कैसे आ जाती है? इसे रेखाचित्र से समझते है।
पॉइंट एंड क्रासिंग अथवा टर्नआउट होता क्या है ?
पॉइंट एंड क्रासिंग या टर्न आउट तीन भागों में होता है जिसमें पॉइंट , लीड व् क्रासिंग होती है।
१ पॉइंट –
पॉइंट में चार रेल होती है। ये चार रेल ,02 स्टॉक रेल और 02 टंग रेल होती हैं। टंग रेल मूवेबल होती है तथा स्टॉक रेल फिक्स होती हैं। इन्ही टंग रेलों से ट्रैन के पहियों को दिशा दी जाती है। ये टंग रेल आगे काफी पतली होती हैं जो स्टॉक रेल के साथ चिपक जाती हैं। एक ओर स्टॉक रेल के साथ चिपकी होती है तो दूसरी ओर टंग रेल, स्टॉक रेल से दूर होती है। ट्रैन एक लाइन से दूसरी लाइन पर कैसे आ जाती है? इसकी वजह ये टंग रेल का मूवमेंट ही है।
२लीड –
लीड पोरशन में भी चार रेल होती हैं। जिनमे से 02 रेल मैं लाइन से कनेक्ट होती हैं तथा 02 रेल दूसरी लाइन के लिए होती है साथ ही ek निश्चित कर्व या गोलाई में होती हैं। क्योकि ये गोलाई साधारण गोलाई / कर्व नहीं होता है इसलिए इस पर ट्रैन गति प्रतिबन्ध के साथ जाती है।
३ क्रासिंग –
लीड से जुडी क्रासिंग होती है जिसके एक ओर लीड तो दूसरी ओर दो लाइन ( मैन लाइन एवं लूप लाइन ) होती हैं। क्रासिंग में बीच में एक गैप होता हैं जिससे दोनों ओर जाने वाले पहिहै को रास्ता प्रदान करता है। इस गैप में पहिया फसकर दूसरी ओर न चला जाये इसके लिए क्रासिंग के अपोजिट रेल से रेल बांध दी जाती है जिसे चेक रेल कहते हैं।
पॉइंट एंड क्रासिंग का ऑपरेशन (सञ्चालन ) एवं मेंटेनेंस-
जैसे की पहले भी बताया है की पॉइंट का ऑपरेशन ऑपरेटिंग विभाग द्वारा किया जाता है , या तो स्टेशन मास्टर या फिर केबिन मन द्वारा। पॉइंट पोरशन की मेंटेनेंस सिग्नल तथा सिविल इंजीनियरिंग विभाग मिलकर करते हैं। सिग्नल विभाग पॉइंट की सेटिंग एवं इसके ऑपरेशन की मेंटेनेंस करता है तथा रेल के घिसाव टूट फुट की मेंटेनेंस सिविल इंजीनियरिंग विभाग करता है। बाकी लीड तथा क्रासिंग पोरशन का मेंटेनेंस केवल इंजीनियरिंग विभाग ही करता है।
अतः यह स्पष्ट है कि ट्रैन एक लाइन से दूसरी लाइन पर कैसे जाती है ? समझ गए होंगे। जिस दिशा के लिए पॉइंट बना होता है उसी दिशा के लिए ही सिग्नल ग्रीन होता है अन्यथा नहीं।
मैन लाइन जिस पर पॉइंट एंड क्रासिंग होते हैं ट्रैन की स्पीड में कोई कमी नहीं होती लकिन जैसे ही पॉइंट एंड क्रासिंग से दूसरी लाइन ( लूप लाइन ) के लिए मुड़ती है स्पीड कम हो जाती है। यह स्पीड टर्न आउट पर निर्भर करती है।
आजकल तो पॉइंट को चलने के लिए माउस और मॉनिटर की जरूरत रहती है जो स्टेशन मास्टर के पास होता है। बहुत बड़े बड़े यार्ड के लिए बड़े बड़े मॉनिटर की सहायता ली जाती है।
गुड्स यार्ड में मालगाड़ी के लिए भी यही सिस्टम अपनाया जाता है।
ऐसे ही अन्य रेलवे की जानकारी तथा अन्य आर्टिकल पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें। Click Here