रेल की पटरी को क्या कहते हैं आईये जानते हैं।
रेल की पटरी को रेलवे की भाषा में ” रेल ” कहते हैं । रेल का कार्य ट्रैन के वजन को स्लीपर पर ट्रांसफर करना एवं पहिये को निश्चित मार्ग प्रदान करना होता है। रेल की बनावट या उसका आकर निश्चित होता है। रेल का स्वयं का वजन भी निश्चित होता है। रेल के वजन के हिसाब से ही इनका वर्गीकरण होता है। जैसे कि 52 kg , 60 kg आदि। 52kg का मतलब होता हे कि उस रेल ( पटरी) का वजन एक मीटर की नाप में 52kg ( वास्तव में 51.89kg) है।
रेल में जंग क्यों नहीं लगता ?
रेल की पटरी ( रेल ) में जंग इस लिए नहीं लगता क्योंकि इस पर समय समय पर पहियों का आवागमन होता रहता है। बाकि सतह पर मैंटीनैंस के दौरान पेंट किया जाता है। इस पेंट करने की आवृति निर्धारित रहती है। जिस इलाके में ज्यादा जंग लगाने की सम्भावन होती है वहां यह आवृति आधी कर दी जाती है । पेंट की Specification आर डी एस ओ द्वारा निर्धारित की जाती है। रेल को ढालते समय भी इस बात का ध्यान रखा जाता है।
क्या रेल टूट जाती है , तब कैसे ट्रैन जाती है ?
जी हाँ वैसे तो रेल की पटरी (रेल) टूटती नहीं है अगर रेल टूटती है तो कभी कभार जाड़ों / ठण्ड के समय ही टूटती है । रेल टूटने की सूचना मिलते ही मरम्मत की जाती है और आवश्यक गति प्रतिबन्ध लागू कर ट्रैन पास की जाती है।
दोनों रेल के बीच दूरी कितनी होती है और इसे क्या कहते हैं?
दोनों रेलों के बीच की दूरी भारत में 1676 mm होती है। इसे ट्रैक गेज कहते है। भारत में ट्रैक गेज तीन प्रकार के होते हैं। ब्रॉड गेज ( 1676 mm) , मीटर गेज ( 1000 mm) और नैरो गेज ( 762 mm )। अधिकतर ब्रॉड गेज ही प्रयोग में आता है बाकि गेज या तो हटा दिए गए है या हटाने की प्रक्रिया में हैं।
रेल पर इतनी भरी ट्रैन कैसे गुजराती है ?
जैसे पुराने ज़माने में और कहीं कहीं आज भी छत बनाते वक्त नीचे गर्डर बराबर दूरी पर डालते है तब उसके ऊपर पटिया/ पत्थर रखते हैं, ताकि वजन बराबर रूप से पटिया या पत्थर से गर्डर पैर और फिर गर्डर से दीवार पर ट्रांसफर हो जाये। ठीक उसी प्रकार से रेल पर आने वाला वजन रेल के नीचे बराबर दूरी बिछे स्लीपर पर ट्रांसफर होता है और उसके बाद गिट्टी पर और फिर जमीन पर आता है।
पुरानी रेलों को कब बदला जाता है ?
पुरानी रेल की पटरी ( रेलों )को जब घिसाव सीमा से अधिक हो जाता है तो रेल को बदल दिया जाता है। इस प्रकार लगभग 10 साल के बाद ही रेलों को बदला जाता है।
क्या रेल का प्रोफाइल बनाये रखने के लिए रेलों की ग्राइंडिंग भी होती है?
जी हाँ , रेल की पटरी (रेल) का प्रोफाइल बनाये रखने के लिए रेल की ग्राइंडिंग भी समय समय पर की जाती है। जिस मशीन से ग्राइंडिंग की जाती है उसे रेल ग्राइंडिंग मशीन कहते हैं। जिन रूटों पर ट्रैफिक ज्यादा होता है और रेलों के घिसने की संभावना बनी रहती है वहां पर ही रेल ग्राइंडिंग मशीन का प्रयोग करते है।
दोनों रेलों का लेवल कैसे बनाये रखते है और कैसे चेक करते हैं ?
दोनों रेलों के बीच लेवल , लेवल से चेक करते हैं । इस लेवल के ठीक बीच में स्पिरिट लेवल होता है जो लेवल चेक करने में मदद करता है। वैसे भी ट्रैक सुपरवाइजर ट्रैन के इंजन या ट्रैन के पीछे वाले डिब्बे में जाकर समय समय पर चेक करते है कि कहीं लेवल ख़राब होने कि वजह से ट्रैक कि रनिंग ख़राब तो नहीं हो गयी है। रेलवे ट्रैक ठीक रहे इसके लिए कोई कमी बर्दास्त नहीं करती। रेल लेवल चेक करते हुए
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